dilnawaz | दिलनवाज़
शनिवार, 7 अगस्त 2010
स्मरण: नुसरत फ़तेह अली खान
नुसरत फ़तेह अली खान
आँखें देखीं तो मैं देखता रह गया
आँखें इनको कहूं या कहूं ख्वाब हैं
आंखें नींची हुईं तो हया बन गईं
आँखें`ऊची हुईं तो दुआ बन गई
आफ़रीन-आफ़रीन...
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